सन्नाटे का पुष्प अनोखा
खो जाते हैं प्रश्न सभी का
इक ही उत्तर जब मिलता है,
सन्नाटे का पुष्प अनोखा
अंतर्मन में तब खिलता है !
उर नि:शब्द, नीरवता छायी
बस होना पर्याप्त हुआ है,
उसी मौन में भीतर घटता
अद्भुत इक संवाद हुआ है !
क्या कहना, क्या सुनना है अब
भेद खुले हैं सारे उसके,
जान जान जाना ना जाए
गढ़ते सब क़िस्से हैं जिसके !
चुप रहकर या सब कुछ कहकर
नहीं ज्ञान हो सकता उसका,
वही ज्ञान है वह है ज्ञाता
बस इतना कोई कह सकता !
कभी कभी सन्नाटा पुष्प की तरह खिलता नहीं भयावह लगता है ।।
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप संगीता जी, अकेलापन आज के समाज की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, अथवा तो साथ होते हुए भी जब आपसी संवाद ख़त्म हो जाए तो भीतर जो सन्नाटा छा जाता है, वह असहनीय हो जाता है। किंतु इन सबको पार करके जब भीतर के मौन से परिचय होता है तब शांति का फूल खिलता है।
हटाएंअंतर्मन की आवाज की गूंज बहुत दूर तक नहीं लेकिन अंदर बहुत रहती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
स्वागत व आभार कविता जी, अंतर्मन की यह आवाज़ भीतर से ही अपना काम करती रहती है
हटाएंउत्कृष्ट सृजन
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