हो तुम जन्मों के चिर-परिचित
तुमसे मिलकर मिटी दूरियाँ
हो गए अपने सब पराये,
अनजाने जाने से लगते
परिचय तुमने दिये कराए !
हो तुम जन्मों के चिर-परिचित
जीवन में तुम ! तुम्हीं मरण में,
दूरस्थ निकट तुम ला देते
खुद प्रतिपल साथ रहे मेरे !
पंछी, बादल, पुष्प रंगीले
है रंग भरा यह जग भाता,
रंग हमें आनन्दित करते
जल में सूर्य रंग बरसाता !
शिशु-बालक हो मुग्ध खेलते
निरख-निरख तुम हर्षित होते !
विमल लहर सुर स्वर बिखराती
सर-सर-सर वट गीत सुनाते,
पत्ते वन-वन डोला करते
जैसे लोरी शिशु हों सुनते
हवा सिहरती क्या कुछ कहती
नयन मुँदे से रहें ऊनींदे !
( गीतांजलि से प्रेरित पंक्तियाँ )
संप्रेषित भाव को आत्मसात करते हुए बस आनंद की अनुभूति होती है । अति सुन्दर कृति ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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