सदा जागरण के ही स्वर दे
परम अनंत अपार प्रेम वह
गुरु की महिमा कही न जाए,
कब कैसे जीवन में आकर
बिछुड़े हुए सुमीत मिलाए !
प्रेम ज्योति जब मद्धिम होती
आकर बाती को उकसाता,
रूखे-सूखे से जीवन में
पुनः पुनः फूल, बहार खिलाता !
गुरु बदली सा बनकर बरसे
जीवन को ख़ुशियों से भर दे,
नयनों में मुस्कान भरे जो
सदा जागरण के ही स्वर दे !
गुरू जहाँ, ऐश्वर्य वहाँ है
अपनेपन की लहरें उठतीं,
सारा जगत मीत बन जाता
मन उपवन में कलियाँ खिलतीं !
गुरु दीवानों का यह आलम
स्वयं बखानें अपनी क़िस्मत,
तृप्ति के सागरों में डूबें
मुस्कानें बन जाती फ़ितरत !
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंवाह , गुरु के प्रति सुंदर भाव दर्शाती रचना ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंतस्मै श्री गुरुवे नमः ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर सृजन
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