यह पल
माना अनंत युग पीछे हैं
और इतने ही आगे हमारे
किंतु यह क्षण
न कभी हुआ न होगा दोबारा
हर दिन नया है
हर घड़ी पहली बार भायी है
चक्र घूम चुका हो चाहे कितनी बार
पर हर बार बरसात
किसी और ढंग से आयी है
स्मृतियों का बोझ न रहे सिर पर
न भावी का कोई डर
इस पल में ही जी लें और मरना पड़े तो जाएँ मर
हर क्षण हमें पूरा ही चाहता है
पूर्ण होकर ही पूर्ण से मिला जा सकता है
हरेक फूल द्वारा
अपनी तरह से ही खिला जा सकता है
इसलिए यह पल दर्द का है या ख़ुशी का
अनमोल है
वक्त के लम्बे दौर में
न इसका कोई मोल है !
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंपूर्ण होकर ही पूर्ण से मिला जा सकता है
जवाब देंहटाएंहरेक फूल द्वारा
अपनी तरह से ही खिला जा सकता है
सृजन के माध्यम से आपने बहुत सुन्दर बात कही है । बेहतरीन सृजन ।
स्वागत व आभार मीना जी!
हटाएंचक्र घूम चुका हो चाहे कितनी बार
जवाब देंहटाएंपर हर बार बरसात
किसी और ढंग से आयी है
स्मृतियों का बोझ न रहे सिर पर
न भावी का कोई डर
इस पल में ही जी लें और मरना पड़े तो जाएँ मर
हर क्षण हमें पूरा ही चाहता है
पूर्ण होकर ही पूर्ण से मिला जा सकता है...बहुत गूढ़ और सुंदर,सार्थक रचना ।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंखूबसूरत कविता।
जवाब देंहटाएंस्वागत वा आभार नीतीश जी!
हटाएंसुंदर शाश्वत से विचार।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। हर पल अनमोल है।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआपको पढ़ते हुए हृदय बस आत्मसात कर तृप्त होता है । सच में कुछ नहीं बचता है कहने के लिए ।
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