हर इक राह सुगम हो जाए
हर कंटक तेरे पथ का मैं
चुन लूँ अपने इन हाथों से,
हर इक राह सुगम हो जाए
दुआ दे रहा है मन कब से !
अनजाने में पीड़ा बाँटी
खुद से ही दूरी थी शायद,
अब जबसे यह भेद खुला है
पल-पल पाती भेज रहा मन !
दुःख में सिकुड़ गया अंतर्मन
शोक लहर जिससे बहती है,
पाला पड़ा हुआ धरती पर
सूर्य किरण झट हर लेती है !
प्रीत उजाला जब प्रकटेगा
खो जाएगा हर विषाद तब,
उसके अनुपम उजियाले में
झलकेंगे पाहन बन शंकर !
जवाब देंहटाएंहर कंटक तेरे पथ का मैं
चुन लूँ अपने इन हाथों से,
हर इक राह सुगम हो जाए
दुआ दे रहा है मन कब से !बहुत ही सुंदर भाव । विश्वास से भरपूर प्रेरक रचना ।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२१-०१ -२०२२ ) को
'कैसे भेंट करूँ? '(चर्चा अंक-४३१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर भावों से सजी आपकी रचना,शुभकामनाएँ,आपकी ब्लॉग पर मैंने पहले भी टिप्पणी करने का प्रयास किया था,पर सफल नहीं हो पाई,
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार, आपको यहाँ देखकर बहुत अच्छा लग रहा है, ऐसे ही अपनी उपस्थिति बनाए रखें, आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!
हटाएंइतनी शक्ति हमें देना ईश्वर कि हम तेरी राह पर चलें । मील के पत्थरों की इंगति को धन्यवाद देते हुए । धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमृता जी !!
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंविश्वास और समर्पण से भरा सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
प्रीत उजाला जब प्रकटेगा
जवाब देंहटाएंखो जाएगा हर विषाद तब,
उसके अनुपम उजियाले में
झलकेंगे पाहन बन शंकर !
वाह!!!
प्रीत का उजालाविषाद के तमस को हर लेगा
बहुत ही सुन्दर लाजवाब।
सुंदर पंक्तियाँ। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सरस रचना
जवाब देंहटाएंगोपेश जी, ओंकार जी, कुसुम जी, सुधा जी, नितीश जी और आलोक सिन्हा जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार !
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