गुरुवार, जनवरी 20

हर इक राह सुगम हो जाए

हर इक राह सुगम हो जाए 


हर कंटक तेरे पथ का मैं 

चुन लूँ अपने इन हाथों से, 

हर इक राह सुगम हो जाए 

दुआ दे रहा है मन कब से !


अनजाने में पीड़ा बाँटी 

खुद से ही दूरी थी शायद, 

अब जबसे  यह भेद खुला है 

पल-पल पाती भेज रहा मन !


दुःख में  सिकुड़ गया अंतर्मन 

शोक लहर जिससे बहती है, 

पाला पड़ा हुआ धरती  पर 

सूर्य किरण झट हर लेती है  !


प्रीत उजाला जब प्रकटेगा 

खो जाएगा हर विषाद तब, 

उसके अनुपम उजियाले में 

झलकेंगे पाहन बन शंकर !


14 टिप्‍पणियां:


  1. हर कंटक तेरे पथ का मैं

    चुन लूँ अपने इन हाथों से,

    हर इक राह सुगम हो जाए

    दुआ दे रहा है मन कब से !बहुत ही सुंदर भाव । विश्वास से भरपूर प्रेरक रचना ।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२१-०१ -२०२२ ) को
    'कैसे भेंट करूँ? '(चर्चा अंक-४३१६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. बहुत सुंदर भावों से सजी आपकी रचना,शुभकामनाएँ,आपकी ब्लॉग पर मैंने पहले भी टिप्पणी करने का प्रयास किया था,पर सफल नहीं हो पाई,

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    1. स्वागत व आभार, आपको यहाँ देखकर बहुत अच्छा लग रहा है, ऐसे ही अपनी उपस्थिति बनाए रखें, आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. इतनी शक्ति हमें देना ईश्वर कि हम तेरी राह पर चलें । मील के पत्थरों की इंगति को धन्यवाद देते हुए । धन्यवाद!

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  5. विश्वास और समर्पण से भरा सुंदर सृजन।
    अप्रतिम।

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  6. प्रीत उजाला जब प्रकटेगा

    खो जाएगा हर विषाद तब,

    उसके अनुपम उजियाले में

    झलकेंगे पाहन बन शंकर !
    वाह!!!
    प्रीत का उजालाविषाद के तमस को हर लेगा
    बहुत ही सुन्दर लाजवाब।

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  7. सुंदर पंक्तियाँ। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  8. गोपेश जी, ओंकार जी, कुसुम जी, सुधा जी, नितीश जी और आलोक सिन्हा जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार !

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