सोमवार, अप्रैल 11

राजे-दिल



राजे-दिल

माना  दुःख-दर्द ढेरों हैं जमाने में 

इश्क़ महके है अब भी हर फ़साने में 

 

लोग तैयार हैं अदावतों की खातिर 

लुत्फ़ आता है पर हँसने-हँसाने में 

 

हर किसी से न कहना राजे-दिल अपना 

सब माहिर यहाँ दूजों को सुनाने में 

 

चंद लम्हों की फुर्सत निकालते रहना 

वक्त लगता नहीं दिलों को भुलाने में 

 


15 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-4-22) को "ऐसे थे न‍िराला के राम और राम की शक्तिपूजा" (चर्चा अंक 4398) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १२ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. चंद लम्हों की फुर्सत निकालते रहना
    वक्त लगता नहीं दिलों को भुलाने में ।बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय अनीता जी।हरेक शेर सार्थक है।

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  4. हर किसी से न कहना राजे-दिल अपना

    सब माहिर यहाँ दूजों को सुनाने में
    बहुत सटीक....
    बहुत सुंदर एवं सार्थक सृजन।

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  5. आज तो कुछ अलग तेवर हैं अनिता जी।
    बेहतरीन ।

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  6. अलहदा सा सृजन सुंदर भावपूर्ण।
    उम्दा!

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  7. वाह! क्या बात है। बहुत ही बढ़िया।

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  8. संगीता जी, कुसुम जी, संजय जी व अमृता जी आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार !

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