राजे-दिल
माना दुःख-दर्द ढेरों हैं जमाने में
इश्क़ महके है अब भी हर फ़साने में
लोग तैयार हैं अदावतों की खातिर
लुत्फ़ आता है पर हँसने-हँसाने में
हर किसी से न कहना राजे-दिल अपना
सब माहिर यहाँ दूजों को सुनाने में
चंद लम्हों की फुर्सत निकालते रहना
वक्त लगता नहीं दिलों को भुलाने में
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-4-22) को "ऐसे थे निराला के राम और राम की शक्तिपूजा" (चर्चा अंक 4398) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार १२ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंचंद लम्हों की फुर्सत निकालते रहना
जवाब देंहटाएंवक्त लगता नहीं दिलों को भुलाने में ।बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय अनीता जी।हरेक शेर सार्थक है।
स्वागत व आभार रेणु जी !
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनुराधा जी !
हटाएंहर किसी से न कहना राजे-दिल अपना
जवाब देंहटाएंसब माहिर यहाँ दूजों को सुनाने में
बहुत सटीक....
बहुत सुंदर एवं सार्थक सृजन।
स्वागत व आभार सुधा जी!
हटाएंआज तो कुछ अलग तेवर हैं अनिता जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ।
अलहदा सा सृजन सुंदर भावपूर्ण।
जवाब देंहटाएंउम्दा!
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है। बहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, कुसुम जी, संजय जी व अमृता जी आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार !
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