वह
कभी भोर होकर भी
भोर नहीं होती
घटटोप बादलों से
आवृत हो जाता है नील नभ
अंशुमान मेघों की अनेक परतों के पीछे
पंछी देर तक दुबके रहते हैं कोटरों में
रात भर बरस कर भी
बदलियाँ थकी नहीं होतीं
टप टप झरती हैं
पेड़ों की डालियों से बूँदे रह रह कर
मंदिरों के द्वार खुल जाते हैं
पर भक्त गण नहीं आते
ऐसे में यदि कोई
परमात्मा को घर बैठे आवाज़ लगाए
तो क्या उससे दूर रह पाएगा वह
पल भर में पानी से भरे सारे रास्तों को पार करके
प्रकट हो जाएगा न
सम्मुख उसके
पूछा मुन्नी ने दादी से !
स्वागत व आभार ओंकार जी !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार!
हटाएंदादी ने क्या जबाब दिया
जवाब देंहटाएंसुखद
वास्तव में दादी ने क्या कहा होगा यह तो नहीं मालूम, पर अनुमान लगाया जा सकता है, आपने भी लगा लिया होगा विभा जी, स्वागत व आभार!
हटाएंबहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंमुन्नी, तू सवाल बहुत पूछती है.
जवाब देंहटाएंबड़ी हो कर जब तू अक्लमंद हो जाएगी तो फिर ऐसे मुश्किल सवालों से दादी को परेशान नहीं करेगी.
वाह! यह भी एक अनुमान हो सकता है!! स्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुन्दर और चिन्तनपरक विचारों के साथ अभिनव एवं अनुपम सृजन ।
जवाब देंहटाएंमासूम की मासूमियत भरी जिज्ञासा
जवाब देंहटाएंआत्म स्पर्शी सत्य।
जवाब देंहटाएंमीना जी, अमृता जी व गगन जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार!
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