कविता
भला किससे है
कविता की महक और मिठास
शब्दों के सुमधुर जाल से
या भावों के सुर और ताल से
कभी ढूँढे नहीं मिलते शब्द पर
भीतर घन बन उमड़ती हैं भावनाएँ
या सागर में उठे ज्वार सी
कभी फुर्सत है शब्द गढ़ने की, तो
सूने सपाट आकाश सा तकता है मन
फिर कैसे कोई गुनगुनाए
इस मरुथल में शब्द पुष्प उगाए
कभी-कभी ही होता है मेल
सोने में सुहागे सा
जब भाव और शब्द दोनों समीप हों
काव्य की सरिता सहज बहती जाए
निज सुवास और रस से
सुहृदों को छूती जाए
जैसे अंतर को तृप्त करें
किसी के नेह भरे बोल
वैसे रख देती है दिल के द्वार खोल
कभी सुख की बरखा बन बरस जाती
कभी नयनों में सावन-भादों भर जाती
कविता जीवन का फूल है
उसकी हर अदा क़ुबूल है !
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-०४ -२०२२ ) को
'चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं'(चर्चा अंक-४४०८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी!
हटाएंआदरणीया अनिता जी,
जवाब देंहटाएंभाव प्रधान रचना!
इस मरुथल में शब्द पुष्प उगाए
कभी-कभी ही होता है मेल
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जब भाव और शब्द दोनों समीप हों
काव्य की सरिता सहज बहती जाए
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और अंतर में तृप्त करे नेह भरे बोल!
साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
स्वागत व आभार!
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसाभार धन्यवाद!
हटाएं"कविता जीवन का फूल है
जवाब देंहटाएंउसकी हर अदा क़ुबूल है ! "
बहुत खुब,सादर नमन आपको
स्वागत व आभार कामिनी जी!
हटाएंवाह अनिता जी. कविता तो वो माला है जिसमें कि हम अपने भावों के मोती पिरोते हैं.
जवाब देंहटाएंभावों के मोती और शब्दों की डोर, नहीं मिलता कविता का कोई ओर छोर!
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