फूल शांति का
झुक जाने में ही विश्राम है
सदा मौन में मिलता राम है
‘और चाहिए’ की ज़िद छोड़कर
जो मिला है उसे स्वीकार लें
विचार सागर की लहरों में
डूबते हुए मन को, उबार लें
भीतर सहज ही किनारा मिलता है
फूल शांति का खिलता है
जो देता है जीवन को दिशा
उमग आती भीतर अनंत ऊर्जा
विशेष होने की कोई चाह न रहे
‘कुछ बनो’ की धारा जब न बहे
थम जाये भीतर शोर मन का
एकांत में उससे मिलन घटे
जिसकी शरण में है कायनात
दे रहा जो हर इक को हयात !
प्रकृति हमें बहुत कुछ सीख देती हैं, बस हमें इसकी समझ जरा देर से आती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सही कह रही हैं आप, प्रकृति हमें अपने आकर्षण में बाँधती है उस परम तक पहुँचाने के लिए!
हटाएंज्ञानवर्धक रचना ,बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंज्ञान का एक मात्र लक्ष्य हमें मुक्त करना है!
हटाएंसटीक सलाह देती सुंदर कृति ।
जवाब देंहटाएंकिसी को भी सलाह नहीं सुझाव ही दिया जा सकता है!
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। जो मिला, उसे स्वीकार करके आगे बढ़ना ही उचित है।
जवाब देंहटाएंजीवन में स्वीकार भाव जगते ही कई द्वार खुलने लगते हैं !
हटाएंसीख देती रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंथम जाये भीतर शोर मन का
जवाब देंहटाएंएकांत में उससे मिलन घटे
जिसकी शरण में है कायनात
दे रहा जो हर इक को हयात !
उसी के शरण में ही सब कुछ है, आध्यात्म की ओर अग्रसर होने को प्रेरित करती बेहद प्यारी रचना,🙏
शरणागति में ही विश्राम है
हटाएंऔर चाहिए’ की ज़िद छोड़कर
जवाब देंहटाएंजो मिला है उसे स्वीकार लें
विचार सागर की लहरों में
डूबते हुए मन को, उबार लें .. सुंदरतम भावों से सजी अभिव्यक्ति, बहुत प्रेरक भी है ।
सुंदर प्रतिक्रिया हेतु आभार जिज्ञासा जी !
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