तथागत ने कहा था
ऐसा है, इसलिए वैसा होगा
उससे बचना है, तो इसे तजना होगा
तथागत ने कहा था !
पल-पल बदल रहा जगत
जहाँ जुड़ी है हर वस्तु दूसरे से
थिर नहीं तन-मन दोनों
आश्रित इकदूजे पर
इनसे प्रेम करना तो ठीक है
पर उम्मीद करना
इनके लिए प्रेम की
दुःख ही उपजाता
है वह सदा एक
जहाँ से प्रेम आता
अनुभव बदल जाएं पर
नहीं बदलता अनुभवी
उसे जान सकता है
दुःख के पार हुआ मन ही !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-5-22) को हे सर्वस्व सुखद वर दाता(चर्चा अंक 4447) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंतथागत के उपदेश कालजयी हैं. आज भी उनके उपदेशों पर चल कर हम अपने दुखों का निवारण कर सकते हैं.
सुंदर और त्वरित प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रेरक रचना ।
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