नदिया ज्यों नदिया से मिलती
हर भाव तुझे अर्पित मेरा
हर सुख-दुःख भी तुझसे संभव,
यह ज्ञान और अज्ञान सभी
तुझसे ही प्रकटा सुंदर भव !
तू बुला रहा हर आहट में
हर चिंता औ' घबराहट में,
तूने थामा है हाथ सदा
आतुरता नहीं बुलाहट में !
हो स्वीकार निमंत्रण तेरा
तेरे आश्रय में सदा रहूँ,
अब लौट मुझे घर आना है
तुझ बिन किससे यह व्यथा कहूँ !
‘मैं’ तुझसे मिलने जब जाता
मौन मौन में घुलता जाये,
शब्द हैं सीमित मौन असीम
वही मौन ‘तू’ को झलकाए !
‘मैं’ खुद को कभी लख न पाता
जगत दिखा जब मिलने जाए,
खुद से अनजाना ही रहता
वक्त का पहिया चलता जाए !
नदिया ज्यों नदिया से मिलती
सागर में जा खो जाती है,
‘मैं’ ‘तू’ में सहज विलीन हुआ
कोई खबर नहीं आती है !
सुंदर भाव ...... आत्मा और परमात्मा का मिलन भाव खूबसूरती से लिखा ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी!
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.6.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4469 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बहुत आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कविता जी!
हटाएं‘मैं’ खुद को कभी लख न पाता
जवाब देंहटाएंजगत दिखा जब मिलने जाए,
प्रभु कृपा से ही सम्भव है खुद को लख पाना...
लाजवाब सृजन।
स्वागत व आभार सुधा जी !
हटाएंनदिया ज्यों नदिया से मिलती
जवाब देंहटाएंसागर में जा खो जाती है,
‘मैं’ ‘तू’ में सहज विलीन हुआ
कोई खबर नहीं आती है !
आपकी कविताओं के भाव सुंदर शांत समृद्ध जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। आभार दीदी ।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंबहुत ही सुंदर भावों की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
स्वागत व आभार अनीता जी !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
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