शनिवार, जुलाई 30

शुभ कर्मों का बहे मकरंद

शुभ कर्मों का बहे मकरंद

​​चेतन अमर, अजर, अविनाशी 

प्रेम, शांति व हर्ष का सागर, 

अहंकार बिंधता स्वयं से 

अहंकार सीमित सम कायर !


जीवन जैसा है, वैसा है 

अहम उसे  स्वीकार न पाए,  

निज झूठी शान की ख़ातिर 

लोकमत का शिकार हो जाए ! 


सीधी, सरल चेतना निर्मल 

अहंकार कई दाँव खेले,  

झूठ की कई दीवारों में  

अपने हाथों क़ैदी हो ले ! 


क़ैद हुआ उनमें फिर खुद ही  

कसता, घुटता, पीड़ित होता, 

सच की एक मशाल जलाकर 

अंधकार चैतन्य हटाता  !


जय वहीं जहाँ सत्य पनपता 

जीवन सत्य  की खोज अनंत,

सत्य का पुष्प खिलेगा, जहाँ 

शुभ कर्मों का बहे मकरंद !


12 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  2. जहाँ शुभ कार्य होंगे वहीं सत्य होगा ...... खूबसूरत रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. जय वहीं जहाँ सत्य पनपता

    जीवन सत्य की खोज अनंत,

    सत्य का पुष्प खिलेगा, जहाँ

    शुभ कर्मों का बहे मकरंद !
    सुंदर प्रस्तुति आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  5. जिज्ञासा जी, भारती जी, सतीश जी, अनामिका जी व दीपक जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!

    जवाब देंहटाएं