शुभ कर्मों का बहे मकरंद
चेतन अमर, अजर, अविनाशी
प्रेम, शांति व हर्ष का सागर,
अहंकार बिंधता स्वयं से
अहंकार सीमित सम कायर !
जीवन जैसा है, वैसा है
अहम उसे स्वीकार न पाए,
निज झूठी शान की ख़ातिर
लोकमत का शिकार हो जाए !
सीधी, सरल चेतना निर्मल
अहंकार कई दाँव खेले,
झूठ की कई दीवारों में
अपने हाथों क़ैदी हो ले !
क़ैद हुआ उनमें फिर खुद ही
कसता, घुटता, पीड़ित होता,
सच की एक मशाल जलाकर
अंधकार चैतन्य हटाता !
जय वहीं जहाँ सत्य पनपता
जीवन सत्य की खोज अनंत,
सत्य का पुष्प खिलेगा, जहाँ
शुभ कर्मों का बहे मकरंद !
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंजहाँ शुभ कार्य होंगे वहीं सत्य होगा ...... खूबसूरत रचना ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी!
हटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, प्रेरक रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह लाजबाव अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा आपने
जवाब देंहटाएंजय वहीं जहाँ सत्य पनपता
जवाब देंहटाएंजीवन सत्य की खोज अनंत,
सत्य का पुष्प खिलेगा, जहाँ
शुभ कर्मों का बहे मकरंद !
सुंदर प्रस्तुति आदरणीय ।
जिज्ञासा जी, भारती जी, सतीश जी, अनामिका जी व दीपक जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!
जवाब देंहटाएंप्रेरक बहुत ही सुंदर
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