भीतर रंग सुवास छिपे थे
डगमग कदम पड़े थे छोटे
शिशु ने जब चलना था सीखा,
लघु, दुर्बल काया नदिया की
उद्गम पर जब निकसे धारा !
बार-बार गिर कर उठता जो
इक दिन दौड़ लगाता बालक,
तरंगिणी बीहड़ पथ तय कर
तीव्र गति से बढ़े ज्यों धावक !
खिला पुष्प जो आज विहँसता
प्रथम बंद इक कलिका ही था,
भीतर रंग सुवास छिपे थे
किंतु कहाँ यह उसे ज्ञात था ?
हर मानव इक वृक्ष छिपाए
बीज रूप में जग में आता,
सीखा जिसने तपना, मिटना
इक दिन वह जीवन खिल जाता !
बूँद-बूँद से घट भरता है
बने अल्प प्रयास महाशक्ति ,
इक दिन में परिणाम न आते
बस छूटे नहीं धैर्य व युक्ति !
जीवनदर्शन बतलाती बहुत सुंदर रचना अनिता दी।
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंवाह!गज़ब का सृजन।
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन।
कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ एवं बधाई ।