प्रेम की भाषा बोले कृष्ण
नन्द-यशोदा अपलक निरखें
बाल कन्हैया का शुभ मुखड़ा,
धन्य हुई ब्रज की धरती पा
नीलमणि सम चाँद का टुकड़ा !
मोर मुकुट पीतांबर धारे
घुंघराली लट ललित अलकें,
ओज टपकता मुखमंडल से
नयनों से ज्यों मधुघट छलकें !
प्रतिदिन ग्वालों सँग गोचारण
यमुनातट वंशीवट घूमें,
वंशी धुन सुन थिरकें ग्वाले
पशु, पक्षी, पादप मिल झूमें !
कृष्ण, कन्हैया, माधव, केशव
मोहन, गिरधारी, वनमाली,
अनगिन नाम कई लीलाएं
वृन्दावन में ही रच डालीं !
प्रेम की भाषा बोले कृष्ण
प्रेम सुधा में भीगी राधा,
प्रेमिल बंधन स्नेहिल धागा
गोकुल में सभी से बांधा !
वाह!बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
प्रेम की भाषा बोले कृष्ण
जवाब देंहटाएंप्रेम सुधा में भीगी राधा,
बेहतरीन
बहुत ही सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंवाह
वाह ..... अद्भुत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी, भक्ति भाव से पूरित सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna!
जवाब देंहटाएंनन्द-यशोदा अपलक निरखें
जवाब देंहटाएंबाल कन्हैया का शुभ मुखड़ा,
धन्य हुई ब्रज की धरती पा
नीलमणि सम चाँद का टुकड़ा !
भक्ति भाव में सराबोर बहुत ही सुन्दर सृजन अनीता जी 🙏
अनीता जी, यशोदा जी, ज्योति जी, संगीता जी, कुसुम जी, व कामिनी जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !
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