तेरे गुण अनुपम अनंत हैं
जग करता तेरा आराधन
हे गणपति ! हम तुझे चाहते,
सबके साधन पूर्ण करे तू
तुझसे बस हम प्रेम मांगते !
ज्ञानसिंधु तू विघ्न विनाशक
रिद्धि सिद्धि का भी है दाता,
अव्यक्त, चिन्मया, अविनाशी
बुद्धि, विवेक, बोध प्रदाता !
तू विशाल, निर्भय, गर्वीला
दर्शन तेरा शक्ति जगाता,
तेरे गुण अनुपम अनंत हैं
अंतर में चेतना जगाता !
बड़ी शान है, बड़ा दबदबा
हर बाधा को सदा रौंदता,
आगे बढ़ने का बल देता
अति दयालु, हर पीड़ा हरता !
कर्ण विशाल सभी की सुनता
नयनों में असीम गहराई,
जो भी झाँकें इन नयनों में
प्रज्ञा उसकी भी जग आई !
छोटे-बड़े सभी हैं तेरे
सदा जागृत सजग प्रहरी सा,
भक्त प्रेम से बंधता तुझसे
दुर्जन को यह पाश बाँधता !
छोटा सा मूषक भी तेरा
मोदक मृदु आनंद सा रसमय,
तुझे समर्पित है तन-मन-धन
हे अनंत ! जग तुझको ध्याता !
वाह! बहुत सुंदर और आनंदप्रदायक स्तुति। गणपति महोत्सव की बधाई!!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विश्वमोहन जी !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 1.9.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4539 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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