रास्ते हैं, यह बहुत है
मंज़िलें हों दूर कितनीं
मंज़िलें हैं, यह बहुत है,
चल पड़े हैं ग़म नहीं अब
रास्ते हैं, यह बहुत है !
पथ कँटीला पाँव हारे
जोश दिल में, यह बहुत है,
नज़र न आए तो क्या है
साथ है तू, यह बहुत है !
इक अनोखी चीज़ दुनिया
जश्न मनते, यह बहुत है,
कब किसी की हुईं पूरी
चाहतें हैं, यह बहुत है !
उम्र केवल एक गिनती
बचपन जवाँ, यह बहुत है,
अजनबी कोई नहीं अब
तू यहीं है, यह बहुत है !
अजनबी कोई नहीं अब
जवाब देंहटाएंतू यहीं है, यह बहुत है !
वाह!
स्वागत व आभार!
हटाएंरास्ते कभी खत्म नहीं होते। हम ही एक रास्ते पे भटकते हैं और दोबारा कोई रास्ता ढूंढना ही नहीं चाहते । बहुत ही प्रेरक रचना ।
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप जिज्ञासा जी, स्वागत है!
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआभार!
हटाएं'कब किसी की हुईं पूरी चाहते हैं ,यह बहुत हैं! वाह!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंईश्वर हमेशा साथ है भले ही वो दिखाई न दे ।
जवाब देंहटाएंसही है, स्वागत है संगीता जी!
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अभिलाषा जी!
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम् भारती जी!
हटाएंगुन गुनाने वाली सारगर्भित कविता।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया हेतु स्वागत व आभार दीदी!
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