जो जीवन हँसता था जग में
कल डोल रहा था खुशियों में
अब गम की चादर ओढ़ी है,
हर सुख के पीछे दुःख आता
यह खूब बनायी जोड़ी है !
जब बादल से नभ ढक जाए
चन्दा सूरज भी घबराए,
फिर खिले चांदनी धूप उगे
तारामंडल भी मुस्काये !
जब जन्मा ढोल बजे घर में
फिर मातम इक दिन छाएगा,
जो जीवन हँसता था जग में
खामोश कहीं खो जायेगा !
जो दौड़ा फिरता था गतिमय
अब बेबस शैया पर लेटा,
यहाँ मौसम नित बदलते हैं
परिवर्तन ही सच जीवन का !
बस वही न बदले कभी यहाँ
देखा करता है जो जग को,
शून्य, पूर्ण, मौन, आनन्दमय
मन के भी पार एकरस वो !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 14 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशोदा जी!
हटाएंकल डोल रहा था खुशियों में
जवाब देंहटाएंअब गम की चादर ओढ़ी है,
हर सुख के पीछे दुःख आता
यह खूब बनायी जोड़ी है !
.. जीवन दर्शन पर बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार!
हटाएंजो अपरिवर्तनशील है उसी में मन लगा लें तो कल्याण हो जाए। जीवन का सार बताती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंप्रकृति के दोनों रंगों से सभी का चाहे-अनचाहे साक्षात्कार होता ही है।कोई भी कितना चाहे इनसे बचना मुश्किल है।भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बधाई प्रिय अनीता जी 🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर व सारगर्भित प्रतिक्रिया, स्वागत है रेणु जी!
हटाएंकल डोल रहा था खुशियों में
जवाब देंहटाएंअब गम की चादर ओढ़ी है,
हर सुख के पीछे दुःख आता
यह खूब बनायी जोड़ी है !... सटीक कथन
उस साक्षी में अवस्थित होना ही मूल है। होश जगाती कृति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमृता जी !
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