एक आभा मय सवेरा
नींद टूटे, जोश जागे
हृदय से हर सोग भागे,
याद में हो मन टिका जब
टूटते हैं मोह धागे !
प्रेम का सूरज दमकता
ज्योत्सना बन शांति छाए,
एक आभा मय सवेरा
तृप्ति की हर रात लाए !
मुक्त उर से गीत फूटे
कर्म की ज़ंजीर बिखरे,
मिले जग को प्राप्य उसका
रिक्त मन की गूंज उतरे !
आस का दीपक न बुझता
सहज सम्मुख मार्ग दिखता,
नहीं मंज़िल दूर कोई
हर घड़ी वह मीत मिलता !
हर कहीं मौजूद है वह
समय केवल एक भ्रम है,
कल वही था आज भी है
वहाँ था जो यहाँ भी है !
अद्भुत सृजन ।हर बन्द लाजवाब । राम नवमी पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 31 मार्च 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशोदा जी!
हटाएंवाह! खूबसूरत सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शुभा जी!
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन ।
स्वागत व आभार सुधा जी!
हटाएंखूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
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