चम्पा सा खिल जाने दो मन
उठो, उठो अब बहुत सो लिये
सुख स्वप्नों में बहुत खो लिये
दुःख दारुण पर अति रो लिये
वसन अश्रु से बहुत धो लिये
उठो करवटें लेना छोड़ो
दोष भाग्य को देना छोड़ो
नाव किनारे खेना छोड़ो
दिवा स्वप्न को सेना छोड़ो
जागो दिन चढ़ने को आया
श्रम सूरज बढ़ने को आया
नई राह गढ़ने को आया
देव तुम्हें पढ़ने को आया
होने आये जो हो जाओ
अब न स्वयं से नजर चुराओ
बल भीतर है बहुत जगाओ
झूठ-मूठ मत देर लगाओ
नदिया सा बह जाने दो मन
हो वाष्पित उड़ जाने दो मन
चम्पा सा खिल जाने दो मन
लहर लहर लहराने दो मन
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंसुन्दर रचना|
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार २० जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार रेणु जी!
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार
नदिया सा बह जाने दो मन
जवाब देंहटाएंहो वाष्पित उड़ जाने दो मन
चम्पा सा खिल जाने दो मन
लहर लहर लहराने दो मन
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंउठ जाग मुसाफ़िर, भोर भई, अब रैन कहाँ, जो सोवत है !
आपकी सुंदर,सकारात्मक रचना का संदेश मन तक पहुँच रहा है अनीता जी।
जवाब देंहटाएंसादर।
मन को जागृत करती लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंवाह!!!