पुरनम सी यह हवा
तेरा पता मिला है औरों से क्या मिलें
पहुँचेंगे तेरे दर अरमान ये खिलें
तुझे छू के आ रही पुरनम सी यह हवा
सब को मेरी दुआ से मिलने लगी शफा
जब से यह बाँधा बंधन थम सा कुछ गया
माटी का तन तपाया कंचन ह्रदय हुआ
दुनिया का सच आखिर आ गया है सम्मुख
फानी है सब जहाँ सुख या कि कोई दुःख
दिल यह मिला है ख़ुद से जब से मिले नयन
पहले पहल थी चिनगी भभकी हुई सघन
जलते हुए जगत में शीतल किया है मन
कैसी अनोखी ज्वाला बुझने लगी तपन
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 जुलाई 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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बहुत बहुत आभार पम्मी जी!
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विश्वमोहन जी!
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंवाह! बहुत सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनीता जी!
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी!
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