भावों का अभाव उर खलता
बनता सहज अभाव का भाव
भावों का अभाव उर खलता
टिकी ‘नहीं’ पर नज़र सदा ही
मन ‘है’ को देख नहीं पाता !
जग, सोने का अभिनय करता
नूतन रंग सपन में भरता,
पल दो पल का भ्रम है सपना
सत्य देखने से यह डरता !
कठिन जगाना जगे हुए को
जल से तेल न होता हासिल,
फिर भी जतन यहाँ जारी है
दूर दिखायी देता साहिल !
कभी होश आ खुलेगी आँख
नभ निज होगा जगेंगी पाँख,
देर न हो जाये डर यह है
रिसता जीवन लाखों सुराख !
बहुत ही सुन्दर हृदय स्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अभिलाषा जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
जवाब देंहटाएंवाह! अनीता जी ,बहुत खूब! जग सोनें का अभिनय करता ,सत्य देखनें से है डरता ...सही कहा आपनें ..
जवाब देंहटाएंस्वागत है शुभा जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंसारगर्भित सृजन, हृदय तक उतरता।
जवाब देंहटाएंह्रदय से स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसच है जागे को जगाना मुश्किल ही होता है ... बहुत भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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