मंगलवार, दिसंबर 12

अमृत पुत्र हैं भारतवासी

अमृत पुत्र हैं भारतवासी

सुख की अभिलाषा ने मारा 

दुख ने सदा सचेत किया है,  

अमृत पुत्र हैं भारतवासी 

जहाँ शिवा ने गरल पिया है ! 


जग के लिए प्रकाश बना जो 

सत्य की नित मशाल जलाता, 

मिथ्या मत  के आडंबर को 

तजने का विज्ञान सिखाता !


घट-घट में निवास देवों का 

वासुदेव कण-कण में बसते , 

ऋत की विमल धार बहती है 

छद्म वेश धारी कब टिकते !


अंधकार में भटक रहा जग 

जीवन का यह मर्म जानता, 

युद्ध और हिंसा से जन्मे 

मतांतरों का हश्र जानता !


ज्ञान, प्रेम, सामर्थ्य, पूर्णता 

कलावंत की होती पूजा, 

मानव मन की थाह न मिलती 

ईश को भी न माने दूजा !


केंद्र कला के, सुर-भाषा के 

सभी उन्हीं देवों से प्रकटे, 

भाव ह्रदय के, लक्ष्य धरा के 

अम्बर से तारों सम लटके !


सजगता  साधना करवाता 

दिव्यता का भाव प्रकटाए, 

जीवन को इक दिशा दिखाकर 

सौंदर्य से प्रीत सिखलाये !


4 टिप्‍पणियां:

  1. केंद्र कला के, सुर-भाषा के

    सभी उन्हीं देवों से प्रकटे,

    भाव ह्रदय के, लक्ष्य धरा के

    अम्बर से तारों सम लटके !

    बहुत सुंदर सृजन अनीता जी ,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
  2. कितना सुन्दर वर्णन ... सच में भारत वासी सौभाग्यशाली हैं ...

    जवाब देंहटाएं