अमृत पुत्र हैं भारतवासी
सुख की अभिलाषा ने मारा
दुख ने सदा सचेत किया है,
अमृत पुत्र हैं भारतवासी
जहाँ शिवा ने गरल पिया है !
जग के लिए प्रकाश बना जो
सत्य की नित मशाल जलाता,
मिथ्या मत के आडंबर को
तजने का विज्ञान सिखाता !
घट-घट में निवास देवों का
वासुदेव कण-कण में बसते ,
ऋत की विमल धार बहती है
छद्म वेश धारी कब टिकते !
अंधकार में भटक रहा जग
जीवन का यह मर्म जानता,
युद्ध और हिंसा से जन्मे
मतांतरों का हश्र जानता !
ज्ञान, प्रेम, सामर्थ्य, पूर्णता
कलावंत की होती पूजा,
मानव मन की थाह न मिलती
ईश को भी न माने दूजा !
केंद्र कला के, सुर-भाषा के
सभी उन्हीं देवों से प्रकटे,
भाव ह्रदय के, लक्ष्य धरा के
अम्बर से तारों सम लटके !
सजगता साधना करवाता
दिव्यता का भाव प्रकटाए,
जीवन को इक दिशा दिखाकर
सौंदर्य से प्रीत सिखलाये !
केंद्र कला के, सुर-भाषा के
जवाब देंहटाएंसभी उन्हीं देवों से प्रकटे,
भाव ह्रदय के, लक्ष्य धरा के
अम्बर से तारों सम लटके !
बहुत सुंदर सृजन अनीता जी ,सादर नमन आपको
स्वागत व आभार कामिनी जी !
हटाएंकितना सुन्दर वर्णन ... सच में भारत वासी सौभाग्यशाली हैं ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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