मंगलवार, मई 7

सदा रहे उपलब्ध वही मन

सदा रहे उपलब्ध वही मन 


यादों का इक बोझ उठाये 

मन धीरे-धीरे बढ़ता है, 

भय आने वाले कल का भर 

ऊँचे वृक्षों पर चढ़ता है !


वृक्ष विचारों के ही गढ़ता

भीति भी केवल एक विचार, 

ख़ुद ही ख़ुद को रहे डराता 

ख़ुद ही हल ढूँढा करता है !


कोरा, निर्दोष, सहज, सुंदर 

ऐसा इक मन लेकर आये, 

जीवन की आपाधापी में 

कहाँ खो गया, कौन बताये ?


पुन: उसको हासिल करना है 

शिशु सा फिर विमुक्त हँसना है, 

फूलों, तितली के रंगों को 

बालक सा दिल से तकना है !


आदर्शों को नव किशोर सा 

जीवन में प्रश्रय देना है, 

युवा हुआ मन प्रगति मार्ग पर 

ले जाये, संबल देना है !


इर्दगिर्द  लोगों की पीड़ा 

प्रौढ़ हुआ मन हर ले जाये,

वृद्ध बना मन आशीषों से 

सारे जग को भरे, हँसाये !


वर्तमान में रहना सीखे 

ऐसा ही मन मिट सकता है, 

सदा रहे उपलब्ध वही मन 

इस जग में कुछ कर सकता है !


12 टिप्‍पणियां:

  1. वही मन
    इस जग में
    कुछ कर सकता है
    सुंदर रचना
    वंदन

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 8 मई अप्रैल 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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  3. बेहतरीन चिन्तन लिए उत्तम सृजन । सादर वन्दे अनीता जी !

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