सदा रहे उपलब्ध वही मन
यादों का इक बोझ उठाये
मन धीरे-धीरे बढ़ता है,
भय आने वाले कल का भर
ऊँचे वृक्षों पर चढ़ता है !
वृक्ष विचारों के ही गढ़ता
भीति भी केवल एक विचार,
ख़ुद ही ख़ुद को रहे डराता
ख़ुद ही हल ढूँढा करता है !
कोरा, निर्दोष, सहज, सुंदर
ऐसा इक मन लेकर आये,
जीवन की आपाधापी में
कहाँ खो गया, कौन बताये ?
पुन: उसको हासिल करना है
शिशु सा फिर विमुक्त हँसना है,
फूलों, तितली के रंगों को
बालक सा दिल से तकना है !
आदर्शों को नव किशोर सा
जीवन में प्रश्रय देना है,
युवा हुआ मन प्रगति मार्ग पर
ले जाये, संबल देना है !
इर्दगिर्द लोगों की पीड़ा
प्रौढ़ हुआ मन हर ले जाये,
वृद्ध बना मन आशीषों से
सारे जग को भरे, हँसाये !
वर्तमान में रहना सीखे
ऐसा ही मन मिट सकता है,
सदा रहे उपलब्ध वही मन
इस जग में कुछ कर सकता है !
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवही मन
जवाब देंहटाएंइस जग में
कुछ कर सकता है
सुंदर रचना
वंदन
स्वागत व आभार !
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 8 मई अप्रैल 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत बहुत आभार पम्मी जी !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबेहतरीन चिन्तन लिए उत्तम सृजन । सादर वन्दे अनीता जी !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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