चाह
वह तैरना चाहती है नीले स्वच्छ जल में
मीन की भाँति
(पर जल अब विमल शेष ही कहाँ है ?)
वह दौड़ाना चाहती है सर्राटे से
कार भीड़ भरी सड़कों से निकालते हुए
या खुले वाहन विहीन मार्गों पर
(पर ऐसे रास्ते बचे कहाँ है और प्रदूषण बढ़ाने का उसे क्या हक़ है ? )
वह लिखना चाहती है कई बेस्ट सेलर पुस्तकें
प्रसिद्ध लेखकों की तरह
( ज्ञान तो पहले से ही बहुत है, उस पर चलना भर शेष है, फिर
अहंकार को मोरपंख लगाने से तो मार्ग और लंबा हो जाएगा )
वह बोलना चाहती है फ़र्राटे से कन्नड़, अंग्रेज़ी और कई भाषाएँ
( पर मौन और मुस्कान की भाषा लोग भूल गये हैं )
वह चित्र बनाना चाहती है
चटख, चमकीले रंगों से
( पर आकाश और धरती रंगे जा रहा है कोई अदृश्य कलाकार प्रतिपल)
वह जो है, जहां है, जैसी है
वैसी ही जीना चाहती है
अपने आप में तृप्त
(आत्मा का साम्राज्य वहाँ है !)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 14 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार यशोदा जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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