जीवन सा हो मरण भी सुंदर
भरे न उर ऊँची उड़ान जब
बरबस बहे न प्रेमिल सरिता,
पाँवों में थिरकन न समाये
जीवन वन सूना सा रहता !
एक मोड़ आये जब ऐसा
रुखसत पूर्ण ह्रदय से ले लें,
जीवन को भरपूर जी लिया
अब स्वयं ही मृत्यु पथ चुन लें !
गहन दुर्दम निद्रा है मृत्यु
जीवन सा हो मरण भी सुंदर,
अंतर का अवसाद मिटाने
मिला सभी को रहने का घर !
जान लिया हर लक्ष्य जगत का
जो पाना था पाया हमने,
पढ़ ही डाले जितने भी थे
ख़ुशियों और गमों के किस्से !
बने कृतज्ञ इस अस्तित्त्व के
धीमे से हम आँख मूँद लें,
जीवन ने कितना कुछ सौंपा
अब अंतिम ऊँचाई पा लें !
मृत्यु सभी भेदों से ऊपर
राजा-रंक सभी मरते हैं,
खेल ख़त्म हो जाते इसमें
व्यर्थ मनुज इससे डरते हैं !
जीने की जो कला सीख ले
सहज मरण के पार हो गया,
देह और मन के ऊपर जा
ख़ुद का जब दीदार हो गया !
आहा, जीवन का सत्य उकेरती अति सुंदर रचना,आपकी आध्यात्मिक रचनाओं का जवाब नहीं।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी नमस्ते,
हटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार ९ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक जीवन के सत्य को अभिव्यक्त करती रचना
जवाब देंहटाएंसादर
स्वागत व आभार अभिलाषा जी !
हटाएंजीवन का सनातन दर्शन!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी !
हटाएंजीने की जो कला सीख ले
जवाब देंहटाएंसहज मरण के पार हो गया,
देह और मन के ऊपर जा
ख़ुद का जब दीदार हो गया !///
क्या बात है अनीता जी! जो इस रूहानी अवस्था तक पहुँच गया उसे तो मुक्ति मिल गई समझो! बहुत सुंदर हृदयाग्राही रचना के लिए हार्दिक बधाई!! 🙏
स्वागत व आभार रेणु जी ! मन को विश्राम वहीं जाकर ही मिलता है
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