ऋण
पिता आकाश है, माँ धरा
जो अपने अंश से
पोषण करती है संतान का
पिता सूरज है, माँ चंद्रमा
जो शीतल किरणों से
हर दर्द पर लेप लगाता है
पिता पवन है, माँ अग्नि
जो नेह की उष्मा से
जीवन में रंग भरती है
पिता सागर है, माँ नदिया
जो मीठे जल से प्यास बुझाती है
पिता है, तो माँ है
आकाश के बिना धरा कहाँ होगी
अंततः सूरज से ही उपजा है चाँद
वाष्पित सागर ही नदी है
दोनों पूरक हैं इकदूजे के
और इस तरह हर कोई
ऋणी है माँ-पिता का !