मंगलवार, मई 7

सदा रहे उपलब्ध वही मन

सदा रहे उपलब्ध वही मन 


यादों का इक बोझ उठाये 

मन धीरे-धीरे बढ़ता है, 

भय आने वाले कल का भर 

ऊँचे वृक्षों पर चढ़ता है !


वृक्ष विचारों के ही गढ़ता

भीति भी केवल एक विचार, 

ख़ुद ही ख़ुद को रहे डराता 

ख़ुद ही हल ढूँढा करता है !


कोरा, निर्दोष, सहज, सुंदर 

ऐसा इक मन लेकर आये, 

जीवन की आपाधापी में 

कहाँ खो गया, कौन बताये ?


पुन: उसको हासिल करना है 

शिशु सा फिर विमुक्त हँसना है, 

फूलों, तितली के रंगों को 

बालक सा दिल से तकना है !


आदर्शों को नव किशोर सा 

जीवन में प्रश्रय देना है, 

युवा हुआ मन प्रगति मार्ग पर 

ले जाये, संबल देना है !


इर्दगिर्द  लोगों की पीड़ा 

प्रौढ़ हुआ मन हर ले जाये,

वृद्ध बना मन आशीषों से 

सारे जग को भरे, हँसाये !


वर्तमान में रहना सीखे 

ऐसा ही मन मिट सकता है, 

सदा रहे उपलब्ध वही मन 

इस जग में कुछ कर सकता है !


रविवार, मई 5

प्रेम

प्रेम 


जिस पर फूल नहीं खिल रहे थे 

उसने उस वृक्ष को 

पास जाकर ऐसे छुआ 

जैसे कोई अपनों को छूता है 

और अचानक कोई हलचल हुई 

पेड़ सुन रहा था 

चेतना हर जगह है 

आकाश में तिरते गुलाबी बादलों  

और लहराती पवन में भी 

 प्रकट हो जाती है 

एक नई दुनिया ! 

जब विस्मय से भर जाता है मन

जैसे कदम-कदम पर कोई 

मंदिर बनता जा रहा हो 

और हर शै उसमें रखी मूरत 

कभी सुख-दुख बनकर 

जिसने हँसाया-रुलाया था 

  शाश्वत बन जाता है वही मन

इतना कठोर न बने यदि 

कि प्रेम भीतर ही भीतर 

घुमड़ता रह जाये 

बंद गलियों में उसकी 

और न इतना महान 

कि प्रेम मिले किसी का 

तो अस्वीकार कर दे 

प्रेम जीवंत है 

वही बदल रहा है 

सागर की लहरों की तरह 

वही यात्री है वही मंज़िल भी !


शुक्रवार, मई 3

संबंध

संबंध 


यह जगत एक आईना है ही तो है 

हर रिश्ते में ख़ुद को देखे जाते हैं  

चुकती नहीं अनंत चेतना 

हज़ार-हज़ार पहलू उभर जाते हैं 

जन्म पर जन्म लेता है मानव 

कि कभी तो जान लेगा सम्पूर्ण 

ख़ुद को 

पर ऐसा होता नहीं 

जब तक अनंत को भी 

अनंतता का दीदार नहीं हो जाता 

तब तक बनाता रहता है संबंध 

विचारों, भावों, मान्यताओं 

और व्यक्तियों से 

वस्तुओं, जगहों, मूर्त और अमूर्त से 

यदि प्यार बाँटता है निर्विरोध 

तो भीतर सुकून रहता है 

रुकावट है यदि किसी भी रिश्ते में 

तो ख़ुद का ही दम घुटता है !




बुधवार, मई 1

मई दिवस पर

मई दिवस पर 


दुनिया बंट गई जब से 

मज़दूर और मालिक में 

बंदे और ख़ालिक में 

शोषित और शोषक 

तब से ही आये हैं अस्तित्त्व में 

पर अब समय बदल रहा है 

श्रमिक भी सम्मानित किए जाते हैं 

सफ़ाई कर्मचारियों के पैर 

पखारे जाते हैं 

आगे की पंक्तियों में स्थान मिलता है 

श्रमिकों को सभाओं में 

श्रम की महत्ता को हम स्वीकारने लगे हैं 

मज़दूर दिवस पर लग रहे हैं नये नारे 

दुनिया के सब लोगों एक हो जाओ

एक तरह से यहाँ सभी श्रमिक हैं 

श्रम के बिना यहाँ कुछ भी नहीं मिलता है 

हाँ, श्रम शारीरिक, मानसिक

या बौद्धिक हो सकता है 

घंटों कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे 

युवा भी श्रमिकों की श्रेणी में आ सकते हैं
रेढ़ी-पटरी वाले और उनको 

ऋण देने वाले बैंक के कर्मचारी 

 दोनों ही समाज का काम करते हैं 

श्रम करते हैं खिलाड़ी 

देश का नाम होता है 

चींटी भी कम श्रम नहीं करती 

घर बनाने और जमा करने में भोजन 

बोझ केवल आदमी ही नहीं उठाता 

पशु भी भागीदार हैं युगों से 

नन्हा शिशु भी पालने में पड़ा -पड़ा 

हाथ पैर मारता है 

श्रम की महत्ता 

प्रकृति का हर कण सिखलाता है ! 


सोमवार, अप्रैल 29

मनुज प्रकृति से दूर गया है

मनुज प्रकृति से दूर गया है 


वृक्षों के आवाहन पर ही 

मेघा आकर पानी देते, 

कंकरीट के जंगल आख़िर 

कैसे उन्हें बुलावा दे दें ! 


सूना सा नभ तपती वसुधा 

शुष्क हुई हैं झीलें सारी, 

 कहाँ उड़ गये प्यासे पंछी

 तोड़ रही है दम हरियाली !


खलिहानों में प्लॉट कट रहे

माँ सी धरती बिकती जाती, 

अन्नपूर्णा जीवन दायिनी 

उसकी क़ीमत आज लगा दी !


बेच-बेच कर भरी तिजोरी 

जल आँखों का सूख गया है,

पत्थर जैसा दिल कर डाला 

मनुज प्रकृति से दूर गया है !


जगे पुकार भूमि अंतर से 

प्रलय मचा देगा सूरज यह, 

अंश उसी का है यह धरती 

लाखों वर्ष लगे बनने में !


जहां उगा करती थी फसलें 

कितने जीव जहां बसते थे, 

सीमेंट बिछा, लौह भर दिया 

मानो कब्र खोद दी सबकी ! 


हरे-भरे वृक्षों को काटा 

डामर की सड़कें बिछवायीं, 

मानव की लिप्सा सुरसा सी 

पर चतुराई काम न आयी !


बेबस  किया आज कुदरत ने

 तपती सड़कों पर चलने को, 

लू के दंश झेलता मानव 

मान लिया मृत जीवित भू को !


अब भी थमे विनाश का खेल 

जो शेष है उसे सम्भालें, 

पेड़ उगायें उर्वर भू पर 

पूर्वजों की राह अपनायें !


एक शाख़ लेने से पहले 

पूछा करते थे पेड़ों से, 

अब निर्जीव समझ कर हम तो 

कटवा देते हैं आरी से !


क्रोध, घृणा, लालच के दानव 

समरसता को तोड़ रहे जब,

छल-छल, रिमझिम की प्यारी धुन 

सुनने को आतुर हैं जंगल! 



शुक्रवार, अप्रैल 26

पंछी इक दिन उड़ जाएगा

पंछी इक दिन उड़ जाएगा 


जरा, रोग की छाया डसती 

मृत्यु, मुक्ति की आस बँधाये, 

पंच इंद्रियाँ शिथिल हुई जब  

जीवन में रस, स्वाद न आये !


कुछ करने की चाह न जागे  

फिर भी आशा देह चलाती, 

जीवन की संध्या बेला में  

पीड़ा उर में रहे सताती !


धन का मोह, मोह पदार्थ का 

अंतिम क्षण तक  रहता जकड़े,

ख़ुद की महिमा समझ न पाया 

मानव मरते दम तक अपने !


 ज्वाला क्रोध जलाया करती 

पहन मुखौटा जग से मिलता, 

कभी-कभी ही सहज प्रेम से 

अंतर कमल जीव का खिलता !


या निर्मल प्रेम संग मन में

काँटा भीतर चुभता रहता, 

भय का एक आवरण मन को 

भ्रमित करे, सुख हरता रहता !


सौ-सौ कष्ट सहे जाता है 

किंतु मोह अतीव जीवन से, 

पंछी इक दिन उड़ जाएगा 

बंधा हुआ जीव तन-मन से ! 


मोह मिटेगा, शांति मिलेगी, 

तोड़ा जब बंधन माया का, 

झुकी कमर, बलहीन हुआ तन 

पुनर्जन्म होगा काया का !


ख़ुशी-ख़ुशी जग विदा करेगा 

पाथेय प्रेम संग बांध दे, 

पथिक चला जो नयी राह पर 

शुभता से उसका मन भर दे !



बुधवार, अप्रैल 24

नयन स्वयं को देखते न

नयन स्वयं को देखते न 


हम हमीं को ढूँढते हैं 

पूछते फिरते कहाँ हो ?

हम हमीं को ढूँढते हैं 

पूछता ‘मैं’ ‘तुम’ कहाँ हो ?


खेल कैसा है रचाया 

अश्रु हर क्योंकर बहाया, 

नयन स्वयं को देखते न 

रहे उनमें जग समाया !


अस्त होता कहाँ दिनकर 

डोलती है भू निरंतर, 

देह-मन को करे जगमग 

आत्मा सदा दीप बन कर !


प्रश्नवाचक जो बना है

पूछता जो प्रश्न सारे

भावना से दूर होगा 

दर्द जो अब भरे आहें !


जो नचाती, घेरती भी  

एक छाया ही मनस की, 

दूर ले जा निकट लाती 

लालसा जीवन-मरण की !


‘तू’ छिपा मुझी  के भीतर 

‘मैं’ मिले ‘तू’ झलक जाये 

एक पल में हो सवेरा 

भ्रम मिटाकर रात जाये !


सोमवार, अप्रैल 22

एकांत

एकांत  

उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक

धरा के इस छोर से उस छोर तक

कोई दस्तक सुनाई नहीं देती

जब तक सुनने की कला न आये 

वह कर्ण न मिलें  

 सुन लेते हैं जो मौन की भाषा 

 जहां छायी है 

अटूट निस्तब्धता और सन्नाटा

वहीं गूंजता है 

अम्बर के लाखों नक्षत्रों का मौन हास्य 

और चन्द्रमा का स्पंदन  

मिट जाती हैं दूरियाँ

हर अलगाव हर अकेलापन

जब मिलता है उसका संदेशा 

एक अनमोल उपहार  सा

और भरा जाता है एकांत 

मृदुल प्यार सा  !