सदा रहे उपलब्ध वही मन
यादों का इक बोझ उठाये
मन धीरे-धीरे बढ़ता है,
भय आने वाले कल का भर
ऊँचे वृक्षों पर चढ़ता है !
वृक्ष विचारों के ही गढ़ता
भीति भी केवल एक विचार,
ख़ुद ही ख़ुद को रहे डराता
ख़ुद ही हल ढूँढा करता है !
कोरा, निर्दोष, सहज, सुंदर
ऐसा इक मन लेकर आये,
जीवन की आपाधापी में
कहाँ खो गया, कौन बताये ?
पुन: उसको हासिल करना है
शिशु सा फिर विमुक्त हँसना है,
फूलों, तितली के रंगों को
बालक सा दिल से तकना है !
आदर्शों को नव किशोर सा
जीवन में प्रश्रय देना है,
युवा हुआ मन प्रगति मार्ग पर
ले जाये, संबल देना है !
इर्दगिर्द लोगों की पीड़ा
प्रौढ़ हुआ मन हर ले जाये,
वृद्ध बना मन आशीषों से
सारे जग को भरे, हँसाये !
वर्तमान में रहना सीखे
ऐसा ही मन मिट सकता है,
सदा रहे उपलब्ध वही मन
इस जग में कुछ कर सकता है !