शांति सरवर मन बने
शांत मन ही ध्यान है
ईश का वरदान है,
सिंधु की गहराइयाँ
अनंत की उड़ान है !
आत्मा के द्वार पर
ध्यान का हीरा जड़ें,
ईश चरणों में रखी
भाग्य रेखा ख़ुद पढ़ें !
जले भीतर ज्ञान अग्नि
शांति सरवर मन बने,
अवधान उपज प्रेम से,
कर्म को नव दिशा दे !
लौट आये उर सदन
ऊर्ध्वगामी गति मिले,
टूट जायें सब हदें
फूल अनहद के खिलें !
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंशांत मन ही ध्यान है....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
सस्नेह
सादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २ दिसम्बर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी!
हटाएंबेहतरीन
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