सोमवार, दिसंबर 1

शांति सरवर मन बने

शांति सरवर मन बने



शांत मन ही ध्यान है 

ईश का वरदान है, 

सिंधु की गहराइयाँ 

अनंत की उड़ान है !


आत्मा के द्वार पर 

ध्यान का हीरा जड़ें,

ईश चरणों  में रखी  

भाग्य रेखा ख़ुद पढ़ें !


 जले भीतर ज्ञान अग्नि

 शांति सरवर मन बने,

अवधान उपज प्रेम से, 

कर्म को नव दिशा दे !


लौट आये उर सदन 

ऊर्ध्वगामी गति मिले,  

टूट जायें सब हदें 

फूल अनहद के खिलें !  


7 टिप्‍पणियां:

  1. शांत मन ही ध्यान है....
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
    सस्नेह
    सादर।
    ----
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २ दिसम्बर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं