मन पाए विश्राम जहाँ
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आश्रय
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आश्रय
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शुक्रवार, फ़रवरी 25
हम आनंद लोक के वासी
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हम आनंद लोक के वासी मन ही सीमा है मानव की मन के आगे विस्तीर्ण गगन, ले जाये यदि यह खाई में इससे ऊपर है मुक्त पवन ! जो कंटक भीतर चुभता ह...
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रविवार, मार्च 29
गाँव बुलाता आज उन्हें फिर
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गाँव बुलाता आज उन्हें फिर सुख की आशा में घर छोड़ा मन में सपने, ले आशाएँ, आश्रय नहीं मिला संकट में जिन शहरों में बसने आये ...
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बुधवार, दिसंबर 7
राह देखता कोई भीतर
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राह देखता कोई भीतर बाहर धूप घनी हो कितनी घर में शीतल छाँव घनेरी, ऊबड़-खाबड़ पथरीला मग दे आमन्त्रण सदा वही ! लहरें तट से...
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सोमवार, जुलाई 1
पिता की स्मृति में
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पिता की स्मृति में एक आश्रय स्थल होता है पिता बरगद का वृक्ष ज्यों विशाल नहीं रह सके माँ के बिना या नहीं रह सकीं वे बिना आ...
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