मन पाए विश्राम जहाँ
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डोर
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मंगलवार, सितंबर 10
बहा करे संवाद की धार
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बहा करे संवाद की धार टूट गई वह डोर, बँधे थे जिसमें मन के मनके सारे, बिखर गये कई छोर, अति हैं प्यारे से ये रिश्ते सारे ! गिरा धरा पर पेड...
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सोमवार, अगस्त 3
जो शेष रहा अपना होगा
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जो शेष रहा अपना होगा वह बनकर बदली बरस रहा फिर चातक उर क्यों तरस रहा, ले जाये कोई बाँह थाम गर उन चरणों का परस रहा ! जो ...
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