मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

डोर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
डोर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मंगलवार, सितंबर 10

बहा करे संवाद की धार

›
बहा करे संवाद की धार  टूट गई वह डोर, बँधे थे  जिसमें मन के मनके सारे,  बिखर गये कई छोर, अति हैं   प्यारे से ये रिश्ते सारे ! गिरा धरा पर पेड...
8 टिप्‍पणियां:
सोमवार, अगस्त 3

जो शेष रहा अपना होगा

›
जो शेष रहा अपना होगा वह बनकर बदली बरस रहा  फिर चातक उर क्यों तरस रहा,  ले जाये कोई बाँह थाम गर उन चरणों का परस रहा ! जो ...
6 टिप्‍पणियां:
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
Blogger द्वारा संचालित.