बहा करे संवाद की धार
टूट गई वह डोर, बँधे थे
जिसमें मन के मनके सारे,
बिखर गये कई छोर, अति हैं
प्यारे से ये रिश्ते सारे !
गिरा धरा पर पेड़ प्रीत का
नीड़ सजे जिस पर थे सुंदर,
शाखा छोड़ उड़े सब पंछी
आयी थी ऐसी एक सहर !
अब उनकी यादों का सुंदर
चाहे तो इक कमल खिला लें,
मिलजुल कर आपस में हम सब
मधुर गीत कुछ नये बना लें !
बहा करे संवाद की धार
चुप्पी सबके दिल को खलती,
जुड़े हुए हैं मनके अब भी
चाहे डोरी नज़र न आती !
कभी कोई प्रियजन सदा के लिए विदा ले लेता है तो परिवार में एक शून्यता सी छा जाती है।
इसी भाव को व्यक्त करने का प्रयास इस रचना में किया गया है।