मन पाए विश्राम जहाँ
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बुधवार, फ़रवरी 19
प्रेम
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प्रेम प्रेम की नन्ही सी किरण हर लेती है सदियों के अंधकार को हल्की सी फुहार प्रीत की सरसा देती है मन माटी को प्रे...
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रविवार, जुलाई 2
पा परस उसका सुकोमल
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पा परस उसका सुकोमल बह रहा है अनवरत जो एक निर्झर गुनगुनाता, क्यों नहीं उसके निकट जा दिल हमारा चैन पाता ! झूमती सी गा रह...
6 टिप्पणियां:
गुरुवार, जुलाई 17
अँधेरे के पार
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अँधेरे के पार प्रकाश की एक दूधिया नदी बहती है भीतर जिसका कोई तट नजर नहीं आता एक अंतहीन सन्नाटे की गूँज जिसकी लहरों में ...
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