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नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !
पोखर
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पोखर
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शुक्रवार, मई 26
शस्य श्यामला मातरम्
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शस्य श्यामला मातरम् लबालब भरे हैं पोखर अमृत जल से हरियाली का उतरा समुन्दर जैसे दूर क्षितिज तक फैले गहरे हरे वन देख-देख ठंडक...
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रविवार, अक्टूबर 13
बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम
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बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम बरस रहा है कोई अविरत झर-झर झर-झर, झर-झर झर-झर भीग रहा न कोई लेकिन ढूँढे जाता सरवर, पोखर ! प्रीत...
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गुरुवार, अप्रैल 4
ट्रेन की खिड़की से
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ट्रेन की खिड़की से उस दिन दिखे थे दूर तक फैले सजे-संवरे चौकोर खेत कतारों में उगी फसलें तैरती बत्तखें, लघु नाव निकट पटर...
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