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गुरुवार, नवंबर 11

हर कोई अपने जैसा है

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हर कोई अपने जैसा है  ​ न ऐसा न ही वैसा है, बस   हर कोई अपने जैसा है ! भोला शावक भरे कुलाँचे  वनराजा की शान अनोखी,  गाँव की ग्वालिनें प्यारी ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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