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गुरुवार, नवंबर 11

हर कोई अपने जैसा है

हर कोई अपने जैसा है 


न ऐसा न ही वैसा है, बस  

हर कोई अपने जैसा है !


भोला शावक भरे कुलाँचे 

वनराजा की शान अनोखी, 

गाँव की ग्वालिनें प्यारी हैं  

गरिमामयी महारानी भी !


यहाँ न कोई कम या ज़्यादा 

आख़िर नर है न कि पैसा है, 

न ऐसा न ही वैसा है, बस   

हर कोई अपने जैसा है !


कारीगर, मज़दूर  न होते  

महल-दुमहले कैसे बनते,   

अल्पज्ञ, अज्ञानी यदि न हो 

गुरुजनों  को कौन पूछते ! 


मित्र बने समझ यही अपनी

फिर दुःख जीवन में कैसा  है ? 

न ऐसा न ही वैसा है, बस   

हर कोई अपने जैसा है !