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रविवार, अक्टूबर 13

बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम

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बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम बरस रहा है कोई अविरत  झर-झर झर-झर, झर-झर झर-झर भीग रहा न कोई लेकिन ढूँढे जाता सरवर, पोखर ! प्रीत...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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