बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम
बरस रहा है कोई अविरत
झर-झर झर-झर, झर-झर झर-झर
भीग रहा न कोई लेकिन
ढूँढे जाता सरवर, पोखर !
प्रीत गगरिया छलक रही है
युगों-युगों से सर-सर सर-सर,
प्यासे कंठ न पीते लेकिन
अकुलाये से खोजें निर्झर !
ज्योति कोई जले निरंतर
बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम,
राह टटोले नहीं मिले पर
अंधकार में टकराते हम !