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गुरुवार, मार्च 10

पल-पल मधु का सोता भीतर

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पल-पल मधु का सोता भीतर चमचम चमक रहा है दिनकर वर्तमान का मन अम्बर पर, ढक लेते अतीत के बादल भावी का कभी छाता अंधड़ ! झर-झर झरता ही रहता है   ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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