मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

सोमवार, जून 5

राग मधुर भीतर जो बहता

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राग मधुर भीतर जो बहता क्या कहना अब क्या सुनना है मौन हुए उसको गुनना है , होकर भी जो नहीं हो रहा उस हित भाव पुष्प चुनना है ! ...
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सोमवार, मई 29

आँसू बनकर वही झर गया

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आँसू बनकर वही झर गया दुःख की नगरी में जा पहुँचे, निकले थे सुख की तलाश में,  अंधकार से भरे नयन हैं   खोल दिये जब भी प्रकाश ...
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शुक्रवार, मई 26

शस्य श्यामला मातरम्

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शस्य श्यामला मातरम् लबालब भरे हैं पोखर अमृत जल से हरियाली का उतरा समुन्दर जैसे दूर क्षितिज तक फैले गहरे हरे वन  देख-देख ठंडक...
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सोमवार, मई 22

लहरें उठतीं अम्बर छूने

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लहरें उठतीं अम्बर छूने जग पल-पल रूप बदलता है  कैसे नयनों में थिर होगा, लहरें उठतीं अम्बर छूने गिर जातीं सागर फिर होगा ! ...
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शुक्रवार, मई 19

उड़ न पाते हम गगन में

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उड़ न पाते हम गगन  में गुनगुनी सी आग भीतर  कुनकुन सा मन का पानी,  एक आशा ऊंघती सी  रेंगती सी जिन्दगानी ! फिर भला क्यों ...
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सोमवार, मई 15

कोई राग छिपा कण-कण में

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कोई राग छिपा कण-कण में पाहन में ज्यों छिपी अगन है उर भावों में छिपी तपन है, कस्तूरी सी महके भीतर, घट-घट में जो बसी लगन है ! को...
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शुक्रवार, मई 12

परम पूज्य सदगुरू के जन्मदिन पर

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परम पूज्य सदगुरू के जन्मदिन पर  खिलता कमल, पूनम का चाँद अरुणिम सूर्य, नीला आकाश, मंद समीर प्रातः का जैसे सद्गगुरु बहता हुआ ...
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गुरुवार, मई 11

मन सिमटा आंगन में जैसे

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मन सिमटा आंगन में जैसे फिर घिर आये मेघ गगन पर फिर गाए अकुलाई कोकिल, मौसम लौट लौट आते हैं, जीवन वर्तुल में खोया मन !   ...
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मंगलवार, अप्रैल 25

एक लघु कहानी

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एक लघु कहानी कल रात्रि पुनः स्वप्न में उसे वही स्वर्ण कंगन दिखा, साथ ही दिखी मारिया की उदास सूरत. वह झटके से उठकर बैठ गयी. एक बार ...
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सोमवार, अप्रैल 24

चलों संवारें वसुधा मिलकर

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चलों संवारें वसुधा मिलकर  विश्व युद्ध की भाषा बोले प्रीत सिखाने आया भारत, टुकड़ों में जो बांट हँस रहे उनको याद दिलाता भारत ! ...
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शुक्रवार, अप्रैल 21

नई कोंपलें जो फूटी हैं

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नई कोंपलें जो फूटी हैं कोकिल के स्वर सहज उठ रहे जाने किस मस्ती में आलम, मंद, सुगन्धित पवन डोलती आने वाला किसका बालम ! गुपचुप-...
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बुधवार, अप्रैल 19

अनजाने गह्वर भीतर हैं

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अनजाने गह्वर भीतर हैं पल-पल बदल रहा है जीवन क्षण-क्षण सरक रही हैं श्वासें, सृष्टि चक्र अविरत चलता है किन्तु न हम ये राज भुला दें ...
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सोमवार, अप्रैल 17

वरदानों को भूल गया मन

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वरदानों को भूल गया मन रिश्ता जोड़ रहा है कब से  पल-पल दे सौगातें  जीवन, निज पीड़ा में खोया पागल वरदानों को भूल गया मन ! ठगता आ...
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सोमवार, अप्रैल 3

एक रहस्य

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एक रहस्य थम जाती है कलम बंद हो जाते हैं अधर ठहर जाती हैं श्वासें भी पल भर को लिखते हुए नाम भी... उस अनाम का नजर भर कोई देख ल...
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मंगलवार, मार्च 28

मिट जाने को जो तत्पर है

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मिट जाने को जो तत्पर है मरना जिसने सीख लिया है उसको ही है हक जीने का, साँझ ढले जो मुरझाये, दे प्रातः उसे अवसर खिलने का ! ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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