मन पाए विश्राम जहाँ

नए वर्ष में नए नाम के साथ प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

गुरुवार, जनवरी 5

हर पीड़ा मुदिता से भर दे

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हर पीड़ा  मुदिता  से भर दे मुक्त पिरोया गया माल में  बिंध मध्य में शून्य हुआ जब, जा पहुँचा सम्मान बढ़ाने  देवस्थल की शोभा बन तब ! मन भी मुक्...
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मंगलवार, जनवरी 3

नया वर्ष - नए विकल्पों का घोष

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नया वर्ष - नए विकल्पों का घोष  जाते हुए वर्ष के अंतिम दिन और नए वर्ष के प्रथम दिन को प्रकृति के सान्निध्य में बिताने की परंपरा कब और कैसे आ...
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शनिवार, दिसंबर 31

नए वर्ष की शुभकामनाएँ

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नए वर्ष की शुभकामनाएँ  हम भारत की आवाज़ बनें  उसकी ऊँची परवाज़ बनें, नए वर्ष में नए हौसले  भर उर में नव आग़ाज़ बनें ! कोने-कोने में फहराएँ  ...
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शुक्रवार, दिसंबर 30

नए तराने गाएँ मिलकर

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नए तराने गाएँ मिलकर  नए वर्ष में आओ ! साथी    नए-नए हो जाएँ खिलकर, नया सृजन हो, नए गीत कुछ  नए तराने गाएँ मिलकर  ! नए विचारों से महकाएँ,  आं...
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गुरुवार, दिसंबर 29

सदा रहे जो

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सदा रहे जो  यहाँ-वहाँ, इधर-उधर  उलझे हैं जो धागे मन के  उन्हें समेटें  बाँधें फिर समता खूँटे से  डोर तान लें  आज किसी का सम्बल पाया  कल जब छ...
मंगलवार, दिसंबर 27

उजियारा मन बाती कारण

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उजियारा मन बाती  कारण देह दीप माटी का जैसे उजियारा मन बाती  कारण,  स्नेह प्राण का, ज्योति आत्म की  जग को किया  उसी ने धारण ! दीपक छोटे, बड़े...
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शनिवार, दिसंबर 24

ज्योति कमल नित नए खिलाता

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ज्योति कमल नित नए खिलाता वह अनंत ही, सांत बना है  भरमाता खुद को, माया से  सत्य मान जो, भ्रमित हो गया  डर जाता है, जो छाया से ! नित  प्रेम जो...
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शुक्रवार, दिसंबर 23

अरूप

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अरूप वह जो अरूप है भीतर  अकारण सुख है  उसकी मुस्कान थिर है  चिर बसंत छाया रहता है उसके इर्दगिर्द  अनहद राग बजता है अहर्निश  जगत से उपराम हुआ...
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बुधवार, दिसंबर 21

कान्हा बंसी किसे सुनाए

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कान्हा  बंसी किसे सुनाए वरदानों से झोली भर दी  पर हमने क़ीमत कब जानी,  कितनी बार मिला वह प्रियतम  किंतु कहाँ सूरत पहचानी ! आस-पास ही डोल रहा...
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मंगलवार, दिसंबर 20

तुम किससे भाग रहे हो

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       तुम किससे भाग रहे हो  तुम किससे भाग रहे हो  और किसकी ओर भाग रहे हो  सच से भाग रहे हो  तो अंतत: सच तुम्हें ढूँढ ही लेगा  मृत्यु से भाग...
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शुक्रवार, दिसंबर 9

चिड़िया और आदमी

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चिड़िया और आदमी चिड़िया भोर में जगती है  उड़ती है, दाना खोजती है  दिन भर फुदकती है  शाम हुए नीड़ में आकर सो जाती है  दूसरे दिन फिर वही क्रम ...
14 टिप्‍पणियां:
मंगलवार, दिसंबर 6

सुदूर कहीं ज्योति की नगरी

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सुदूर कहीं ज्योति की नगरी  झांक रहा कोई भीतर से  भारी पर्दे क्यों लटकाए,  बाहर अबद्ध  गगन बुलाता    पिंजरे में विहग घबराए ! विमुक्त करो मान...
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रविवार, दिसंबर 4

लहरें और सागर

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लहरें और सागर लहर पोषित करती है स्वयं को  सागर पूर्णकाम है  लहार  चाह से भरी  है  सागर  तृप्त  है लहर दौड़ लगाती है  शायद दिखाना चाहती है शौ...
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Anita
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है.
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