सोमवार, जुलाई 29

मृगतृष्णा सा सारा जीवन


मृगतृष्णा सा सारा जीवन


जो भी चाहो सब मिलता है
 माया का जादू चलता है,
फिर भी जीवन उपवन सूना
दिल का फूल कहाँ खिलता है !

रूप रंग है कोमल स्वर भी
थमकर देखें समय कहाँ,
सपनों का इक नीड़ बनाते
नींद खो गयी चैन गया !

अरमानों को बड़ा सहेजा
चुन-चुन कर नव स्वप्न संजोये,
बिखर गये सूखे पत्तों से
 बरबस ही फिर नयन भिगोये !

कदमों में आशा भर दौड़े
हाथों में था गगन समाया,
किंतु दूर ही रहा क्षितिज सम
मुट्ठी में कुछ भी न आया !

मृगतृष्णा सा सारा जीवन
पार नहीं इसका मिलता है,
मन मयूर भी सदा डोलता
ज्यों लहरों में शशि हिलता है ! 

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" मंगलवार 30जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. अनुपम सृजन ।
    बहुत बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  3. स्वागत व आभार अनुराधा जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत प्यारी रचना अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. ये माया भी उसी इश्वर की देन है ... अंतस के चक्षु खुद ही खोलने होंगे सब साफ़ दिखाई देगा ... सुन्दर रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  6. पूर्णतः सत्य वचन..स्वागत व आभर !

    जवाब देंहटाएं