महाभूत जो महादेव का
कल-कल, छल-छल, सलिला का जल
अविरल निर्मल बहता रहता,
जल जीवन को धारण करता
भू को सिंचित करता बढ़ता !
दिनकर रश्मियों संग वाष्पित
चंचल अनिल उड़ा ले जाता,
जल धारा बना पुनः धरा पर
नदियां नाले पोखर भरता !
बादल बन अम्बर में रहता
पावन शीतल नीर बरसता,
पशु, पादप, कीट, विटज, मानव
सर्व प्राण की तृषा बुझाता !
महाभूत जो महादेव का
जल तत्व को सभी जन चाहें,
नहीं हो दूषित, व्यर्थ बहे न
जल के देव वरुण को ध्याएँ !
सरस बनाता, स्वाद जगाता
अंगों को रखता कोमलतम,
जल ना हो तो जल जाए जग
जल है सत्यम शिवम सुंदरम !
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंअनुपम
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसार्थक और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
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