भिगो गई है प्रीत की धारा
दिल की गहराई में बसता
सत्य एक ही, प्रेम एक ही,
दिया किसी ने, चखा किसी ने
सुख-समता का स्वाद एक ही !
जैसे जल नदिया का या फिर
अंबर में बादल बन रहता,
भाव प्रीत का हर इक दिल में
कभी बह रहा, कभी बरसता !
उसी चेतना से आयी थी
उसी चेतना को कर पोषित,
भिगो गई शुभ प्रीत की धारा
मन-प्राण हुए सबके हर्षित !
शुभ भावना जगी जो भीतर
प्रसून मैत्री के जो पुष्पित,
अवसर पाकर मुखर हुए जब
करें ह्रदय को पुन: सुवासित !