बुधवार, जनवरी 15

राम में विश्राम या विश्राम में राम

राम में विश्राम या विश्राम में राम


भीग जाता है अंतर 

जब उस एक के साथ एक हो जाता है 

समाप्त हो जाती है 

कुछ होने, पाने, बनने की दौड़ 

जब हर साध उठने से पहले ही 

हो जाती है पूर्ण 

कुछ होने में अहंकार है 

कुछ न होने में आत्मा 

कुछ पाने में भय है खो जाने का 

छोड़ने में आनंद 

कुछ बनने में श्रम है 

 जो हैं उसमें विश्राम 

और विश्राम में है राम 

तब राम ही मार्ग दिखाते हैं 

पथ जीवन का सुझाते हैं 

ध्यान में मिलते 

जीवन में संग उन्हें पाते हैं 

संत जन इसी लिए एक-दूजे को 

‘राम राम जी’ कहकर बुलाते हैं ! 


सोमवार, जनवरी 13

पीली आग भली लगती है लोहड़ी की

लोहड़ी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ 


पीली आग भली लगती है लोहड़ी की 

दिल में कैसी धुन बजती है लोहड़ी की !


मकई के फुल्ले मूँगफली  

 गज्जक-रेवड़ियाँ तिल-गुड़ की,

अग्निदेव को करें समर्पित 

वैश्वानर भीतर आदीपित !


खेतों में जब झूमती फसलें सरसों की 

पीली आग भली लगती है लोहड़ी की !


गिद्धे और भांगड़े सजते 

तन पर सुंदर वस्त्र शोभते, 

पहली लोहड़ी नववधू की 

या घर आये कोमल शिशु की !


दिल में कितना रंग जगाती उमंग भरी 

पीली आग भली लगती है लोहड़ी की !


रविवार, जनवरी 12

हादसा

हादसा 


बढ़ती जाती है भीड़ मंदिरों में 

सैकड़ों, हज़ारों अब लाखों की 

दिलों में आस और विश्वास लिए 

कि जो गुहार लगायी 

वह सुनी जाएगी 

पर अचानक हो जाने वाले हादसों में 

गुहार लगाने वाला ही नहीं बचता 

भगदड़ में सदा के लिए गुम हो जाता  

 कुछ हो जाते हैं घायल 

देवता भी सिहर जाते होंगे 

शायद राह दिखाते हों 

मृतात्माओं को 

कहते होंगे 

जब अनेक बार आ चुके, 

अनेक बार फिर आना है 

क्या जल्दी है आगे जाने की 

परमात्मा तो हर जगह है 

कुछ न कुछ पाने की 

कुछ न कुछ बनने की 

होड़ में लगा मानव 

ख़ुद को गँवा देता है 

भीड़ में दबकर विदा लेने से 

बुरा, भला और क्या हो सकता है ! 


शुक्रवार, जनवरी 10

तलाश




तलाश 

हर तलाश ख़ुद से दूर लिए जाती है 
जिंदगी हर बार यही तो सिखाती है 

खुदी में डूब कर ही उसको पाया है 
अगर ढूँढा किसी ने सिर्फ़ गँवाया है 

दिल यह छोटा सा भला कब खोज पाएगा
मिलन हुआ भी तो कहाँ उसे बैठायेगा 

हो रही है सारी खोज जल की मरुथल में 
 न बुझेगी प्यास जिगर सूना रह जाएगा 

उठाकर आँख जरा देखो यहीं पाओगे 
वरना यूँही यह दिल तकता रह जाएगा

प्रीत का बीज सोया उसे जगाना है 
खिल उठेगा खुशबुओं से भर जाएगा  

बुधवार, जनवरी 8

पाथेय

पाथेय 


जीवन की शाम आये 

इससे पहले 

थोड़ी सी तो मुस्कान समो लें भीतर 

पाथेय पास हो अपने 

तो रास्ता सहज ही कट जाएगा 

राह का हर अँधेरा 

ख़ुद में ही सिमट जाएगा 

भरी दोपहरी में 

जीवन की 

यदि शिकायत ही करते रह गये 

तो ख़ाली हाथ जाना होगा 

फिर उस दीर्घ मार्ग पर 

कोई न ठिकाना होगा !


सोमवार, जनवरी 6

तम की कारा में दुख झेला

तम की कारा में दुख झेला 


तम की कारा में दुख झेला 

राजस मुक्ति पथ दिखलाता, 

सत ने सत्य  को दिया आश्रय 

लेकिन क्रम पुन: तम का आया !


एक  चक्र में घूम रहे जन 

बार-बार वे गलियाँ आतीं, 

जिनमें दंश कभी पाये थे 

फिर भी कदम वहीं लिए जातीं !


निज भूलों को भाग्य बताकर   

निज करनी से बाज न आते, 

जिस राह  पर मिले थे काँटे 

फिर-फिर उस पर कदम बढ़ाते  !


स्वयं ज्ञान का करें अनादर 

सुख  चाहों  में दौड़े जाते, 

तृष्णा मन की तृप्त न होगी 

अटल सत्य यह फिर बिसराते  !


सतयुग से कलयुग तक पहुँचे  

 अब फिर से ऊपर जाना है, 

थम जाये यह बस सतयुग में 

 इक नया विधान बनाना है !



शुक्रवार, जनवरी 3

आत्म सूर्य

आत्म  सूर्य 


तप में लीन है सूर्य 

किसी तापस सा 

अथवा 

एक यज्ञ चल रहा है अनवरत 

सूर्य की सतह पर !


ऊर्जाएँ बन रही हैं  

बदल रही हैं 

सारे ग्रह, धरा और चन्द्र 

जो कभी उसके अंश थे 

अब एक परिवार की तरह 

उसके अनुयायी हैं !


शीतल हैं 

चाँद की किरणें 

धरा को पोषित करतीं 

 जगा जाते हैं सूर्य के हाथ

भूमि की संतानों को !

    उसी ज्योति का प्रसाद 

पंछियों का कलरव    

और जल का कलकल भी 

सारे तत्व उसी की देन हैं !


आत्मा सूर्य है 

मन चंद्रमा, धरती देह 

आत्मा पोषित करती है 

देह को अदृश्य हाथों से 

मन का द्वन्द्व 

वहीं से आया है !

 तप करके 

 ही कर सकती है 

आत्मा उस विश्व का निर्माण 

जो न्यायपूर्ण हो !