आसमान निर्मल अविकारी
अंबर, अधर, व्योम, नीलाम्बर
गगन, अनंत, अविचल, अकम्पन,
अरबों, खरबों नक्षत्रों को
निज अवकाश किया है धारण !
शून्यवत न होता परिभाषित
धरती को द्यौ व्याप रहा है,
नित प्रकाश रंगों से सजता
निज का कोई रंग नहीं है !
एक विशाल चँदोवे जैसा
तारों से मंडित यह अनुपम,
एक तत्व है सूक्ष्म अनश्वर
रचता है जिसे स्वयं ईश्वर !
सभी नाद अगास में होते
वायु संग आकाश मिले जब,
भीतर तन के बाहर मन के
ठहरे इसमें दोनों तन-मन !
कभी घने बादल ढक लेते
जैसे मन को ढके कुहासा,
आसमान निर्मल अविकारी
चमके तड़ित या हो गर्जना !
सु न्दर सृ जन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुन्दर।
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