अस्तित्व
बदलियों
में छुप गया
फिर आकाश
में चाँद
जैसे छिप
जाता है कोई
बच्चा खेल-खेल
में
परदे के
पीछे !
दूर वृक्ष
की डाली पर
नीला एक
फूल खिला
जैसे मुस्काया
हो अस्तित्व
अपनी सृष्टि
को निहार !
रात भर
गूँजता है
संगीत झींगुरों
का
अनथक वे गाते
हैं
अचानक थम
गया उनका गान
एक तेज
आवाज से काँपी धरा !
शायद कहीं
कोई विस्फोट हुआ
मानव की
लालसा का
टूटा पुन:
कोई पहाड़
समतल जमीन
पाने हेतु !
आनंद सहज
ही बरसता हो जहाँ
वहाँ आयोजन
करने पड़ते हैं
लोगों को हँसाने के
यह विडंबना नहीं तो और क्या है ?
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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